Journey Without Ticket
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Journey Without Ticket 2

Journey Without Ticket
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रोज की तरह आज भी तयशुदा वक़्त पर ऑफिस के लिए निकला तो मौसम को देखकर सहसा किसी की याद आ ही गई, वैसे हर किसी की अपनी कहानी होती है, एक अपनी कहानी जिसमे वो हीरो होता है साथ मे एक हिरोइन बिल्कुल बालिवुडिया फ़िल्मो टाइप, वैसे देखा जाए तो इन सारी बातों का मतलब क्या? क्यू करता है इंसान ये सब? मेरी समझ से हर किसी को अलग अलग तरीक़ों से सुकून की तलाश रहती है, मगर कहते हैं की सुकून तलाशनें से नहीं मिलता, ये अक्सर अप्रत्याशित होता है, जो अचानक कही से आकर आपके ज़िंदगी के पलों को खूबसूरत बना देता है, खुशी कभी मरती नहीं हमेशा साथ होती है, मेरे साथ भी है यादों के रूप में, वैसे तो ज़िंदगी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, जो कुछ हुआ उसके अनुरूप खुद को ढाल पाना थोड़ा मुश्किल सा है, दिमाग़ मे उथल पुथल सा चलता रहता है, इन सब के बीच ऑफिस का वो रास्ता जिसपे शायद हमने सबसे ज़्यादा वक़्त बिताया चलते चलते, (वोही तुम्हारे कॉलेज के आस पास वाली सड़क), इनको मेरे अंदर कुछ बचे रहने की वजह माना जा सकता है.
हालाँकि अब ये सड़क पहले जैसी नहीं रही, ट्रैफिक बहुत बढ़ गया है, इन सब के बीच कानों मे हेडफोन लगाए Enrique की नज़्म “Somebody’s me” सुनते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ना, हालाँकि बगल से जाती हुई गाडि़यो की आवाज़ इसे रैप मे बदलने की जीतोड़ कोशिश कर रही थी, ये सड़कें अनायास ही सारी यादों को PPT की स्लाइड शो बना कर आँखो के सामने ले आती हैं और इस मौसम ने तो जैसे F5 press कर दिया, और वो D पार्क…उसमें एक दूसरे की हर ऐंगल मे फोटो खिंचक हम दोनों, और फोटो बढ़िया ना आने पे वो गुस्सा और इसी बीच चुपके से वो गुस्से वाली फोटो निकाल लेना, जो बाद मे कभी कभी पसंद भी आ जाती और सहेज कर रख लेते. खाने के नाम पे ज़्यादातर चिली पोटैटो इस लॉजिक के साथ की इससे वेट बढ़ता है और एक मारुति वैन मे मिलने वाली थाली, और साथ मे वो ज़ायकेदार टिफिन, जिसमे तुम्हारे हिसाब से 2-4 पराठे with सब्जी, या पीले चावल, या राजमा और rarely चिकन जिसमें कभी लेग पीस नहीं होता था. यादें रास्ते से उठा के विपरीत दिशा मे लेके EDM माल तक पहुच गईं जिसमें 3 घंटे की शॉपिंग मे 1-2 जोड़ी जूती या चप्पलें होती थीं ज़्यादातर, और हां फोटोस भी. पोज़, ऐंगल, लाइट्स, कलर का इतना ज्ञान हो गया था की अब सोच रए हैं की फोटोग्राफी मे ही करियर कहे नहीं बना लिया. इनमें जो सुकून था आज नहीं मिलता, ज़िंदगी को थोड़ा खूबसूरत बस ये यादें ही बनाती हैं.
सुकून ही प्रेम/प्यार सब कुछ है, ऑफिस पहुचते ही इन सब पर विश्लेषण करता ये दिल, ये निषकर्ष निकालने की कोशिश करता है की कैसा था वो प्रेम? मुझे प्रेम था कह नहीं पाया,
क्यूकी,
तुम्हारा प्रेम आबद्ध था,
मेरा प्रेम स्वतंत्र,
तुम्हारा प्रेम सुनियोजित था,
मेरा प्रेम आकस्मात,
तुम प्रेम में कुछ तलाशती थी,
मै प्रेम मे सिर्फ़ प्रेम तलाशता था,
तुम प्रेम की उपयोगिता देखती थी,
मै प्रेम की उपलबध्ता,
तुम कुछ खोना कुछ पाना चाहती थी,
मै इन सबको परे रखने की कोशिश मे था
तुम्हारा प्रेम परिभाषित था,
मेरा प्रेम अब तक अपरिभाष्य है

ज़िंदगी की ट्रेन मे without टिकेट सफ़र करते हुए बड़ा चौकन्ना रहना पड़ता है, किस्मत रूपी टीटी हमें सुकून रूपी मंज़िल पर पहुचने से रोकता है, कभी बर्थ पर कभी फर्श पर तो कभी टाय्लेट मे सफ़र करना पड़ता है, सब किस्मत का खेल है शायद. बाकी सब कुशल मंगल है. बस कसक इतनी सी है की

यूं चलो कुछ दूर साथ तुम भटकते हुए परिंदो की तरह,
कोई बात ऐसी बिल्कुल नयी जैसी, बातों की ट्रेन पे चढ़ते हैं,
बंद कमरे सा शहर साँस घुटती है,
चलो बादलों को घर बना पांव रखते हैं,
तुम्हारे बाद हर खुशी पानी जैसी,
रेत से पानी पे गिले शि़कवे लिखते हैं,
दूर जहाँ ज़मीन मिलती है आसमान से,
अगली बार वहां पे जा कर हम बिछड़ते हैं,
Skip मारते हैं सारे स्टेशनों को,
चलो आख़िरी सुकून के स्टेशन पे हम मिलते हैं….

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